Ladakh Protest 2025: लद्दाख इन दिनों सुर्खियों में है। यहाँ के लोग लंबे समय से पूर्ण राज्य का दर्जा और छठी अनुसूची में शामिल करने की मांग कर रहे हैं। इसको लेकर शांतिपूर्ण आंदोलन शुरू हुआ था, लेकिन अब हालात अचानक बिगड़ गए हैं। आइए आसान भाषा में समझते हैं पूरी इसकी कहानी की आखिर मामला है क्या ?
आंदोलन की शुरुआत कैसे हुई?
- 10 सितंबर से अनशन शुरू किया गया।
- आंदोलन का नेतृत्व लेह एपेक्स बॉडी (LAB) कर रही है।
- मशहूर सामाजिक कार्यकर्ता सोनम वांगचुक भी इस अनशन में शामिल हुए थे।
- शुरुआत में आंदोलन पूरी तरह शांतिपूर्ण था।
कई जगहों पर हमले और आगजनी की घटनाएँ हुईं। आंदोलनकारियों ने भाजपा कार्यालय में आग लगा दी। पुलिस की गाड़ियों को भी आग के हवाले कर दिया गया।
सोनम वांगचुक का कदम
उन्होंने साफ कहा कि हिंसा आंदोलन का हिस्सा नहीं हो सकती। इसी कारण उन्होंने अनशन खत्म कर दिया। लोगों से अपील की कि वे शांतिपूर्ण तरीके से ही अपनी मांगें रखें।
आंदोलन का नेतृत्व कौन कर रहा है?
आंदोलन का नेतृत्व लेह एपेक्स बॉडी और कारगिल डेमोक्रेटिक अलायंस (KDA) कर रहे हैं। पिछले 4 सालों से सरकार से बातचीत की कोशिशें जारी हैं। कई बार गृह मंत्रालय से बात हुई, लेकिन कोई ठोस नतीजा नहीं निकला। अगली बैठक 6 अक्टूबर को होने वाली है।
आंदोलनकारियों की मुख्य शिकायतें (DEMANDS)
- लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा दिया जाए।
- लद्दाख को संविधान की छठी अनुसूची में शामिल किया जाए ताकि यहां के लोगों को जमीन, रोजगार और प्राकृतिक संसाधनों पर अधिकार मिल सके।
- सरकार को हिल काउंसिल चुनाव से पहले इन मांगों पर फैसला करना चाहिए।
लेह एपेक्स बॉडी के को-चेयरमैन छेरिंग दोरजे ने कहा:
“हमारा विरोध शांतिपूर्ण है, लेकिन लोगों का धैर्य टूट रहा है।”
सोनम वांगचुक का कहना है कि अगर सरकार ने छठी अनुसूची की मांग मान ली, तो लोग चुनावों में भागीदारी करेंगे और लोकतांत्रिक व्यवस्था मजबूत होगी।
लोगो का कहना है,
सरकार जब भी बातचीत की तारीख तय करती है, तो पहले से सूचित नहीं करती।
तारीख का ऐलान सीधे सरकार की ओर से कर दिया जाता है। लोगों को लगता है कि सरकार उनकी सही तरह से सुनवाई नहीं कर रही।
आगे क्या होगा?
6 अक्टूबर को सरकार और आंदोलनकारियों के बीच महत्वपूर्ण बैठक होने वाली है। यही बैठक लद्दाख के भविष्य को लेकर निर्णायक साबित हो सकती है।
निष्कर्ष
लद्दाख का आंदोलन सिर्फ राज्य का दर्जा पाने का नहीं, बल्कि पहचान और अधिकार की लड़ाई है।
यहां के लोग चाहते हैं कि उनकी संस्कृति, जमीन और संसाधनों की रक्षा हो।
अब सबकी नजरें आने वाली 6 अक्टूबर की बैठक पर टिकी हुई हैं।